पेरेंट्स की इन 4 अनजाने बर्ताव से कमजोर होता है बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस

पेरेंट्स की इन 4 अनजाने बर्ताव से कमजोर होता है बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस पेरेंटिंग वास्तव में एक यूनिक और स्पेशल एक्सपीरियंस है। यह एक फुल टाइम जॉब है जो आपको एक ही समय में खुशी, गुस्सा, उत्साह और चुनौतियों का एहसास करा सकती है। माता-पिता के रूप में, आप अक्सर खुद से सवाल करते हुए पाएंगे कि क्या जो मैंने किया वो सही था, क्या मैंने सही बात कही, क्या मैं इसे बेहतर कर सकता था,आदि। बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंसऐसे विचार आना पूरी तरह से नार्मल है क्योंकि पेरेंट्स होने का मतलब है कि आप पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। जिस तरह से आप अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं और उनसे बात करते हैं, उसका उनके बढ़े होने पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप जो करते और कहते हैं उसमें सावधान रहें, खासकर यदि वे नेगेटिव कमैंट्स हों। नेगेटिव कमैंट्स आपके बच्चे का सेल्फ कॉन्फिडेंस कम कर सकती हैं और उन्हें खुद पर संदेह करने पर मजबूर कर सकती हैं की वह क़ाबिल नहीं हैं ।

अक्सर जब पेरेंट्स का मूड खराब होता हैं या वे परेशान होते हैं तो वे अनजाने में बच्चों से ऊंची आवाज में बात करते हैं या कभी-कभी उन्हें समझाने के लिए चिल्ला भी देते हैं, जो बच्चों के दिमाग के लिए हानिकारक होता है। इससे बच्चें डर जाते है या दुखी हो जाते हैं और खुद पर संदेह करने लगते हैं कि शायद उन्होंने कुछ गलत किया है या वे प्यार और सम्मान के लायक नहीं हैं।

बच्चे अपने पेरेंट्स का सम्मान करते हैं और उनकी राय को महत्व देते हैं, इसलिए यदि आप भी ऐसी गलती कर रहे हैं, तो आपको सावधान रहना चाहिए क्योंकि इसका असर आपके बच्चे के भविष्य, उनके सेल्फ कॉन्फिडेंस, उनके रिश्ते और यहां तक कि उनकी शिक्षा पर भी पड़ सकता है। इस आर्टिकल में हम आपसे ऐसी 4 गलतियों के बारे में बात करेंगे जिनसे आपको बचने की कोशिश करनी चाहिए……..

  1. बच्चों पर न रखे सख्त अनुशासन

कभी-कभी पेरेंट्स अपने बच्चों को अनुशासित करते समय बहुत सख्त हो जाते हैं, उदाहरण के लिए जब उनसे कुछ गिर जाता है, तो अक्सर माता-पिता की पहली प्रतिक्रिया गुस्सा होने की होती है- देख कर नहीं उठा सकते थे, ध्यान कहा रहता है तुम्हारा और कुछ माता-पिता तो सीधे मार पीट पर उतर आते है, बच्चों पर हाथ उठा लेते है या उन्हें सज़ा देंते है । इन सभी हरकतों से बच्चे की भावनाओं को ठेस पहुँचती है।

इसके बजाय उन्हें शान्ति से बताना चाहिए जैसा कि चलो कोई नहीं आप भविष्य में चीजों का ध्यान रखे, नाजुक चीज़ों को सावधानी से पकडे, इनके टूटने का डर रहता है या कोई बेहतर तरीके अपनाये। ध्यान रखें आपका फोकस उन्हें मार्गदर्शन करने पर होना चाहिए। अनुशासन का मतलब बच्चों को पढ़ाना और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करना है, न कि उन्हें बुरा महसूस कराना।

  1. बच्चों की भावनाओं को न करे नजरअंदाज

कभी-कभी पेरेंट्स अपने काम में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि बच्चों की बातें सुनकर भी उन्हें अनसुना कर देते हैं। इससे बच्चों पर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है उन्हें लगता है कि माता-पिता को उनकी भावनाओं की परवाह नहीं है और वे खुद को अकेला महसूस करते हैं। बच्चों को चाहिए कि जब वे दुखी, क्रोधित या खुश हों तो उनके माता-पिता सुनें और समझें। माता-पिता के लिए यह दिखाना महत्वपूर्ण है कि वे उनकी देखभाल करते हैं और सहायता प्रदान करते हैं। इस तरह उन्हें लगता है कि उनकी भावनाएँ महत्वपूर्ण हैं। बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस बढ़ता है और उसे प्यार का एहसास होता है।।

  1. बच्चों को प्रेरित करने के लिए न करें नकारात्मक (नेगेटिव) भाषा का इस्तेमाल

कभी-कभी पेरेंट्स अपने बच्चों को समझाने के लिए नेगेटिव शब्दों का प्रयोग करते हैं। यह कुछ परिस्थितियों में काम करता है, लेकिन यह सही दृष्टिकोण (approach) नहीं है। इससे बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस कम होता है और आत्म-संदेह पैदा होता है।

बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस

उदाहरण के लिए, अक्सर बच्चे होमवर्क करते समय बहुत आना कानि करते है, ऐसे में पेरेंट्स हसी में ही बोल देते है  ‘अरे, तुम्हें इतना आसान सवाल नहीं आता, तुम्हारे दोस्तों को पता चलेगा तो सब हंसेंगे।’, यह फार्मूला शुरुआत में बच्चे को प्रेरित करता है, हालाँकि, यह रवैया बच्चे के अवचेतन मन (subconcious mind) में कहीं न कहीं घर कर जाता है। इसलिए, अगली बार जब वे ऐसी स्थिति में होंगे जहां उन्हें किसी प्रश्न का उत्तर देना होगा, तो वे शायद प्रयास नहीं करना चाहेंगे क्योंकि उनके अवचेतन मन में कुछ बात उन्हें संदेह करने पर मजबूर कर देगी कि वे सही हैं या नहीं। क्या उन्हें जवाब देना चाहिए? गलत उत्तर देने पर क्या लोग हँसेंगे? आदि ।

  1. बच्चों को अपने निर्णय लेने से न रोके

बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस

कभी-कभी पेरेंट्स अत्यधिक सुरक्षा (over protection) के कारण बच्चों को छोटे-छोटे निर्णय लेने से भी रोकते जैसे बच्चों को बाहर जाने के लिए अपने कपड़े खुद चुनने की अनुमति न देना, भले ही पेरेंट्स सिर्फ यही चाहते हों कि उनका बच्चा अच्छा दिखे। वे बच्चे की मदद करना चाहते हैं लेकिन इसका बच्चे पर नेगेटिव प्रभाव पड़ता है और उन्हें लगता है कि वे अपने लिए कुछ अच्छा नहीं चुन सकते हैं या शायद उनमें उतनी समझ नहीं है। इससे बच्चे का सेल्फ कॉन्फिंडेंस घटता है। पेरेंट्स हमेशा अपने बच्चों की सुरक्षा और मदद करना चाहते हैं, लेकिन कभी-कभी बच्चों को उनके ऊपर ही छोड़ देना चाहिए। जब बच्चे स्वयं प्रयास करते हैं तो उन्हें अच्छा लगता है। वे खुद पर विश्वास करने लगते हैं कि वे किसी की मदद के बिना भी काम करने में सक्षम हैं। उन्हें अपनी क्षमताओं पर भरोसा होने लगता है।

अंत में, जब आप इन बातों को याद रखेंगे, तो आप अपने बच्चे को अधिक आत्मविश्वासी बनने में मदद कर सकेंगे, और आपका रिश्ता बेहतर हो जाएगा। आप न सिर्फ पेरेंट्स के तौर पर बल्कि एक दोस्त के तौर पर भी उन्हें समझ सकेंगे और उनसे बात कर सकेंगे।

 

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